• संसद में वक्फ बिल के पारित होने से देश में राजनीतिक हलचल

    भारत की संसद के दोनों सदनों में वक्फ बिल के पारित होने से तुरंत ही राजनीतिक हलचल मच गयी, जिसका असर पूरे भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक महसूस किया गया

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

    - डॉ. ज्ञान पाठक

    सबसे पहले बिहार में जेडी(यू) को नुकसान उठाना पड़ा है, जो राज्य में भाजपा की एनडीए सहयोगी है, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। जेडी(यू) के दो वरिष्ठ नेताओं ने अपने इस्तीफे की घोषणा की है, और मुस्लिम समुदायों में पार्टी के बड़ी संख्या में कार्यकर्ता पार्टी छोड़ सकते हैं, क्योंकि उनका पार्टी पर से भरोसा उठ गया है।

    भारत की संसद के दोनों सदनों में वक्फ बिल के पारित होने से तुरंत ही राजनीतिक हलचल मच गयी, जिसका असर पूरे भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक महसूस किया गया। दोनों ही पक्षों के राजनीतिक दल-विपक्षी इंडिया ब्लॉक और भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र की सत्तारूढ़ एनडीए- इससेअधिकतम राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन दोनों ही पक्षों को उभरने वाली नई चुनौतियों के लिए खुद को फिर से तैयार करना होगा।

    सबसे पहले बिहार में जेडी(यू) को नुकसान उठाना पड़ा है, जो राज्य में भाजपा की एनडीए सहयोगी है, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। जेडी(यू) के दो वरिष्ठ नेताओं ने अपने इस्तीफे की घोषणा की है, और मुस्लिम समुदायों में पार्टी के बड़ी संख्या में कार्यकर्ता पार्टी छोड़ सकते हैं, क्योंकि उनका पार्टी पर से भरोसा उठ गया है। जेडी(यू) ने संसद में वक्फ विधेयक का समर्थन किया था।

    जेडी(यू) के वरिष्ठ नेता मोहम्मद कासिम अंसारी और पार्टी के अल्पसंख्यक विंग के राज्य सचिव मोहम्मद शाह नवाज मलिक ने जेडी(यू) सुप्रीमो नीतीश कुमार को अलग-अलग पत्र लिखकर कहा है कि मुसलमानों का पार्टी पर से भरोसा उठ गया है, जिसे वे पहले धर्मनिरपेक्ष पार्टी मानते थे।

    शाह नवाज मलिक ने लिखा, 'हमारे जैसे लाखों भारतीय मुसलमानों को अटूट विश्वास था कि आप पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के ध्वजवाहक हैं। लेकिन अब यह विश्वास टूट गया है। वक्फ विधेयक संशोधन अधिनियम 2024 के बारे में जेडीयू के रुख से हमारे जैसे लाखों समर्पित भारतीय मुसलमान और कार्यकर्ता गहरे सदमे में हैं।'
    मोहम्मद कासिम अंसारी ने लिखा कि वक्फ बिल 'भारतीय मुसलमानों के खिलाफ' है और इसे 'किसी भी हालत में' स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने आगे कहा कि 'यह बिल संविधान के कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इस बिल के जरिये भारतीय मुसलमानों को अपमानित किया जा रहा है। न तो आपको और न ही आपकी पार्टी को इसका अहसास है। मुझे अफसोस है कि मैंने अपनी जिंदगी के कई साल पार्टी को दे दिये।'

    हालांकि, जेडी(यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने यह कहकर इस्तीफों को कमतर आंकने की कोशिश की कि वे पार्टी के आधिकारिक ढांचे में नहीं हैं, लेकिन कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि पार्टी के अल्पसंख्यक समर्थन आधार के जेडी(यू) को छोड़ने की सबसे अधिक संभावना है। मामला यहीं नहीं रुकता, क्योंकि एनडीए के एक अन्य सहयोगी चिराग पासवान के नेतृत्व वाली एलजेपी (रामविलास) भी अपना अल्पसंख्यक समर्थन खो सकती है। अगर ऐसा होता है, तो एनडीए को बिहार में काफी नुकसान होगा।

    बिहार में आरजेडी और कांग्रेस को फायदा हो सकता है, वे वर्तमान में बिहार में महागठबंधन का हिस्सा हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया ब्लॉक है। एलजेपी (रामविलास) और जेडी(यू) के अल्पसंख्यक आधार का अलग होना राज्य में महागठबंधन सहयोगियों की ही राजनीतिक ताकत बढ़ायेगा। बिहार में जातिगत राजनीति और ओबीसी आरक्षण के लिए इंडिया ब्लॉक की मांग का भी अतिक्ति प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि उनका मानना है कि नीतीश कुमार ने खुद को भाजपा के हाथों बेच दिया है, जो राज्य में जाति जनगणना का लगातार विरोध करती रही है, हालांकि यह नीतीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व काल में किया गया था, जिसके बाद वे राजद को छोड़कर भाजपा के साथ मिल गये।

    आंध्र प्रदेश में एनडीए के अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी टीडीपी और जेएसपी ने पहले ही अपने खिलाफ दबाव महसूस करना शुरू कर दिया है। दोनों ने वक्फ बिल का समर्थन किया है, जबकि मुख्य विपक्षी राजनीतिक दल वाईएसआरसीपी ने इस बिल की निंदा करते हुए कहा है कि- यह संवैधानिक गारंटी और अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन करता है। टीडीपी और जेएसपी दोनों को इस कारण अपने अल्पसंख्यक समर्थन आधार को खोने का खतरा है।

    तमिलनाडु में मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन वक्फ बिल के सबसे कड़े आलोचकों में से एक हैं। वे 3 अप्रैल को तमिलनाडु विधानसभा में बिल के पारित होने के खिलाफ काली पट्टी बांधकर आये थे। उन्होंने यह भी घोषणा की है कि उनकी सरकार इस बिल को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देगी। उन्होंने यह भी कहा कि कैसे केंद्र और राज्यों में भाजपा सरकार अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है। तमिलनाडु में भी अगले साल चुनाव होने हैं।

    जबकि पूरा इंडिया ब्लॉक वक्फ बिल के विरोध में था, भाजपा नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 2013 में यूपीए सरकार द्वारा लाया गया संशोधन 'चरम' और एक और 'तुष्टिकरण' अभ्यास था। भारत के प्रधान मंत्री ने वक्फ बिल के पारित होने को एक महत्वपूर्ण क्षण कहा, और दावा किया कि इससे हाशिए पर पड़े मुसलमानों को मदद मिलेगी।

    इस प्रकार भाजपा ने न केवल भाजपा के पक्ष में अधिक हिंदू धु्रवीकरण के लिए अपनी हिंदुत्व राजनीति को आगे बढ़ाया, बल्कि मुस्लिम समुदाय को विभाजित करके कुछ लाभ प्राप्त करने की कोशिश भी की, जिसमें जोर दिया गया कि नया बिल हाशिए पर पड़े मुसलमानों के लाभ के लिए है।

    पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वक्फ बिल पारित करने के लिए सरकार पर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा, 'हमारी पार्टी का रुख स्पष्ट है - यह विधेयक संविधान पर एक बेशर्म हमला है। यह हमारे समाज को स्थायी ध्रुवीकरण की स्थिति में रखने की भाजपा की जानबूझ कर बनायी गयी रणनीति का हिस्सा है।' उन्होंने आगे कहा कि भाजपा 'देश को रसातल में धकेल रही है, जहां हमारा संविधान केवल कागजों पर रह जायेगा।' कांग्रेस तो वक्फ विधेयक की संवैधानिकता को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की योजना भी बना रही है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पर वक्फ विधेयक के राजनीतिक प्रभाव के बारे में चेतावनी दी।

    हालांकि भाजपा को लगता है कि वक्फ राजनीति से उसे हिंदू वोटों का धु्रवीकरण करके लाभ मिलेगा, लेकिन एनडीए में उसके सहयोगी दलों को अपना अल्पसंख्यक समर्थन खोने का खतरा है। सहयोगी दलों के बिना भाजपा को अपनी ताकत खोने का भी खतरा है, खासकर तब जब वर्तमान में उसका अस्तित्व गठबंधन की राजनीति पर निर्भर करता है।

    पूरा इंडिया ब्लॉक वक्फ विधेयक के विरोध में संसद में एकजुट नजर आया, जिसने देश में भाजपा-आरएसएस के प्रभुत्व के खिलाफ संयुक्त राजनीतिक लड़ाई का रास्ता खोल दिया है।

    संसद के दोनों सदनों में वक्फ (संशोधन) विधेयक के पारित होने के बाद देश में2025 में राजनीतिक मंथन की उम्मीद की जा सकती है।

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

बड़ी ख़बरें

अपनी राय दें